BA Semester-1 Manovigyan - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2630
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान के प्रश्नोत्तर

प्रश्न- व्यक्तित्व के विभिन्न उपागमों या सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।

लघु प्रश्न
1. मनोविश्लेषण सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिये।
2. युग के नव्य विश्लेषणात्मक सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
3. एरिक्सन के मनोसामाजिक सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
4. सामाजिक अधिगम सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
5. मानवतावादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
6. शीलगुण सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
7. व्यक्तितव का शीलगुण उपागम।

उत्तर -

फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त
(Freud's Psychoanalytical Theory)

 

मनोविश्लेषणवाद के संस्थापक डा. सिग्मण्ड फ्रायड (Dr. Sigmond Freud) ने व्यक्तित्व की व्याख्या गहन तथा विस्तृत रूप से की है। यह सिद्धान्त उनके चालीस वर्षों (1900-1940) के शोध अनुभवों पर आधारित है। फ्रायड ने व्यक्तित्व के विकास के लिये व्यक्ति के जीवन के आरम्भिक पाँच वर्षों को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना है। उनके अनुसार आरम्भिक पाँच वर्षों में बालक के विकास का सम्पूर्ण ढांचा तैयार हो जाता है और शेष जीवन में वह उस ढांचे को विस्तार ही देता रहता है। फ्रायड ने इस विकास को पाँच भागों में बाँटा है। उनके अनुसार सबसे पहले मुखवर्ती अवस्था में बालक अपना अंगूठा मुख में डाल कर चूसता है और सन्तुष्टि का अनुभव करता है। गुदावस्था में वह मलमूत्र इत्यादि गन्दी वस्तुओं को स्पर्श करता है, खेलता है तथा रोकने पर नाराजगी व्यक्त करता है। लैंगिक अवस्था में वह लैंगिक अंगों (Sex organs) को स्पर्श करके आनन्द का अनुभव करता है। अव्यक्त अवस्था में उसमें लैंगिक आनन्द की भावनाएँ दब जाती हैं और उसका ध्यान बाहरी वातावरण पर केन्द्रित हो जाता है। अन्तिम अवस्था, जननिक अवस्था में विपरीत लिंगीयों के प्रति उसका आकर्षण बढ़ जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि फ्रायड ने लैंगिकता का उपयोग व्यापक अर्थों में किया है।

फ्रायड का मत है कि मनोलैंगिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं मे बालक को जिस प्रकार के अनुभव होंगे उसी प्रकार का उसका व्यक्तित्व भी विकसित होगा। फ्रायड ने इस प्रकार विकसित होने वाले व्यक्तित्व की संरचना में तीन घटक इदम (Id), अहम् (Ego) तथा पराअहम (Super ego) का वर्णन किया है। फ्रायड के अनुसार व्यक्तित्व का मूल स्रोत इदद्म (Id) ही है जो नवजात शिशु में विद्यमान रहता है। इसी से बाद में अहम् तथा पराअहम् का विकास होता है। इसी में यौन तथा आक्रामकता सहित सभी अन्तर्नोद रहते हैं। इसी में लैंगिक ऊर्जा पायी जाती है जिसे लैंगिक शक्ति (Libio) कहते हैं। अहम् वास्तविकता सिद्धान्त (Reality Principle) का अनुसरण करता है तथा पराअहम सामाजिक मान्यताओं, मूल्यों, आदर्शों तथा प्रचलनों का प्रतिनिधित्व करता है।

नव्य मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त
(Neo-Psychoanlytical Theory)

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन फ्रायड के शिष्य युग (Young, 1931) ने किया है। युग ने फ्रायड द्वारा लैंगिक कारकों पर अधिक बल देने पर आपत्ति करते हुए कहा है कि व्यक्तित्व के विकास के लिए कुछ अन्य मूल प्रवृत्तियाँ भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने व्यक्ति के लक्ष्यों (Goals) एवं आकांक्षाओं (Aspirations) पर अधिक बल दिया है। युंग के अनुसार व्यक्ति के व्यवहार पर व्यक्तिगत अचेतन (Personal unconscious) के अतिरिक्त सामूहिक अचेतन (Collective unconcious) का भी प्रभाव पडता है जिसे वह अनुवांशिकता से प्राप्त करता है। इसी में प्रत्येक प्रकार के व्यवहार एवं स्मृतियाँ पायी जाती हैं। सामूहिक अचेतन का निर्माण पीढी दर पीढ़ी के अनुभवों में होता है और यही व्यवहार का निर्देशन करता है। युग के अतिरिक्त अन्य नव- मनोविश्लेषणात्मकवादियों ने भी फ्रायड की मूल प्रवत्यात्मक एवं लैंगिक कारकों को अधिक बल देने के कारण आलोचना की है। इस विचार के समर्थकों में प्रमुख एडलर (Adler 1930), हार्नी (Horney, 1937) फ्राम, (Fromm 1941), सलिवान (Sullian) आदि प्रमुख हैं। इनका विचार है कि व्यक्ति जिस समाज में रहता है उस समाज की विशेषताओं की छाप उसके व्यक्तित्व पर अवश्य पड़ती है। इन्होंने मूल प्रवृत्तियों के बजाय समाज की संस्कृति के प्रभाव पर अधिक बल दिया हैं। इनका यह भी मानना है कि इद्म (Id) की अपेक्षा अहम् (Ego) अधिक महत्वपूर्ण है और इसका विकास स्वतन्त्र रूप से होता है इसका अपना स्वयं का शक्ति स्रोत होता है तथा इसका कार्यक्षेत्र भी व्यापक है।

मनोसामाजिक सिद्धान्त
(Psycho Social Theory)

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक एरिक्सन (Erikson, 1963) द्वारा किया गया है। ये भी मूल रूप से मनोविश्लेषणवादी रहे हैं परन्तु इनका मानना है कि व्यक्तित्व के विकास में जैविक कारकों की अपेक्षा सामाजिक कारकों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है। बच्चे को अपने जीवन में जिस प्रकार की सामाजिक अनुभूतियाँ होंगी उसी के अनुरूप विकास के प्रतिमान भी प्रदर्शित होगे। फ्रायड की भांति एरिक्सन का भी मानना है कि विकास की एक अवधि में बालक को जो अनुभव होता है वह आगामी विकास को भी प्रभावित करता है। एरिक्सन ने इदम् (Id) की अपेक्षा अहम् (Ego) को अधिक महत्वपूर्ण बताया है। इनकी मान्यता है कि व्यक्ति की वास्तविकताओं को समझकर उसके जीवन को सन्तुलित बनाया जा सकता है। इसके अनुसार बालक का सामाजिक परिवेश उसके व्यक्तित्व के विकास को सर्वाधिक प्रभावित करता है। एरिक्सन ने व्यक्तित्व के विकास को आठ अवस्थाओं में विभाजित किया है।

सामाजिक अधिगम सिद्धान्त
(Social Learning Theory)

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक डालर एवं मिलर (Dollar and Miller, 1941) बण्डुरा (Bandura, 1973) आदि हैं। सामाजिक अधिगम सिद्धान्तवादी व्यक्ति के विकास में सामाजिक अधिगम को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। उनका सामाजिक अधिगम से तात्पर्य बालक द्वारा अपने परिवेश के साथ घटित होने वाली अन्तःक्रिया द्वारा विभिन्न प्रकार के व्यवहारों के अर्जन से होता है।

इस विचारधारा के समर्थकों का मानना है कि व्यक्तित्व व्यक्तिगत कारकों तथा परिस्थितिजन्य कारकों के मध्य होने वाली अन्तःक्रिया का परिणाम है। इसे प्रक्षेणात्मक या अनुकरणात्मक अधिगम भी कहते हैं क्योंकि बच्चे प्रारम्भ में अपने माता-पिता तथा थोड़ा बड़ा होने पर अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों के व्यवहारों का अनुकरण करते हैं तथा वैसा ही बनना चाहते हैं। इस सिद्धान्त के प्रमुख प्रत्यय नमूना या आदर्श, प्रेक्षण, अनुकरण, ध्यान, धारणा, क्रियात्मक पुनरावृत्ति, अभिप्रेरणा, तादात्मीकरण आदि हैं।

मानवतावादी सिद्धान्त
(Humanistic Theory)

मानवतावादी व्यक्तित्व सिद्धान्त के प्रतिपादक कार्ल रोजर्स (Carl Rogors, 1970) तथा अब्राहम मैस्लो (Abraham Maslow, 1970) हैं। यह सिद्धान्त व्यक्तित्व के विकास में स्व की अवधारणा (Concept of sel) एवं व्यक्ति की वैयक्तिक अनुभूतियों (Individual experiences) को ही सर्वाधिक महत्व देता है। इनके अनुसार व्यक्तित्व का विकास इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति किस रूप में स्वयं अपने आपको तथा अपनी अनुभूतियों को समझता है और विश्व के बारे में उसके विचार किस प्रकार के हैं। रोजर्स ने व्यक्तित्व की व्याख्या में आत्म या स्व (Self) को सर्वाधिक महत्व दिया है क्योंकि स्व का प्रभाव व्यक्ति के प्रत्यक्षीकरण तथा व्यवहार पर पड़ता है और यही व्यवहार का निर्धारक है। इस सिद्धान्त के दूसरे प्रबल समर्थक मैस्लो ने व्यक्तित्व के समुचित विकास के लिए आत्मसिद्धि (Self-actualization) को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना है। उनके अनुसार व्यक्ति मे पाँच प्रकार की आवश्यकताएँ होती हैं। ये आवश्यकतायें क्रमश दैहिक, सुरक्षा, सम्बन्ध एवं प्यार, आत्म प्रतिष्ठा तथा आत्मसिद्धि हैं। इनका विकास क्रमशः होता है। जीवन के आरम्भ में व्यववहार पर दैहिक एवं सुरक्षा की आवश्यकता का प्रभाव अधिक पड़ता है किन्तु आगे चलकर अन्य आवश्यकतायें भी व्यक्तित्व को अधिक प्रभावित करती हैं। आत्मसिद्धि सर्वोच्च आवश्यकता है जिसमें व्यक्ति में विवेक, सहिष्णुता, वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन एवं स्वतन्त्र चिन्तन आदि का विकास होता है। जिसके परिणामस्वरूप स्वस्थ व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

शीलगुण सिद्धान्त
(Trait Theories)

शीलगुण सिद्धान्त व्यक्तित्व के विकास के बजाय व्यक्तित्व की विशेषताओं पर अधिक बल देते हैं। इस सिद्धान्त के प्रतिपादकों, आलपोर्ट, एडवर्ड, कैटेल, आइजनेक एवं गार्डन आदि मनोवैज्ञानिकों के अनुसार व्यक्ति की अनुक्रियाएँ तथा उसके व्यवहार उसकी व्यक्तित्व प्रणाली के शीलगुणों द्वारा निर्धारित होते हैं। व्यक्तित्व के वैज्ञानिक अध्ययन में इसी सिद्धान्त का उपयोग सर्वाधिक हुआ है। इसके अन्तर्गत कारक विश्लेषण के आधार पर व्यक्तित्व प्रणाली में पाये जाने वाले अनेक गुणों का पता लगाया गया है। कैटेल के अनुसार कुछ शीलगुण अनुवांशिकता पर निर्भर होते हैं तथा कुछ का विकास पर्यावरण द्वारा निर्धारित होता है। इसमे प्रथम प्रकार के शीलगुण संरचनात्मक शीलगुण (Constitutional traits) दूसरे पर्यावरणीय निर्धारित शीलगुण (Environment mold traits) होते हैं।

इस प्रकार स्पष्ट है कि भिन्न-भिन्न विद्वानों ने व्यक्तित्व के अध्ययन के लिए भिन्न भिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या की है। इनमें से कोई भी सिद्धान्त सर्वमान्य नहीं है। यह समस्या आरम्भ से ही बनी हुई है और निकट भविष्य में भी इसके निदान की कोई सम्भावना नहीं दिखाई देती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मनोविज्ञान की परिभाषा दीजिये। इसके लक्ष्य बताइये।
  2. प्रश्न- मनोविज्ञान के उपागमों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- व्यवहार के मनोगतिकी उपागम को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- व्यवहारवादी उपागम क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- संज्ञानात्मक परिप्रेक्ष्य से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- मानवतावादी उपागम से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- मनोविज्ञान की उपयोगिता बताइये।
  8. प्रश्न- भगवद्गीता में मनोविज्ञान को किस प्रकार समाहित किया है? उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- सांख्य दर्शन में मनोविज्ञान को किस प्रकार व्याख्यित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  10. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में मनोविज्ञान किस प्रकार परिभाषित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  11. प्रश्न- मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि से क्या तात्पर्य है? सामाजिक परिवेश में इस विधि की क्या उपयोगिता है?
  12. प्रश्न- मनोविज्ञान की निरीक्षण विधि का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
  13. प्रश्न- मनोविज्ञान को परिभाषित करते हुए इसकी विधियों पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- सह-सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? सह-सम्बन्ध के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की गणना विधियों का वर्णन कीजिए। कोटि अंतर विधि का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की दिशाएँ बताइये।
  17. प्रश्न- सह-सम्बन्ध गुणांक के निर्धारक बताइये तथा इसका महत्व बताइये।
  18. प्रश्न- जब {D2 = 36 है तथा N = 10 है तो स्पीयरमैन कोटि अंतर विधि से सह-सम्बन्ध निकालिये।
  19. प्रश्न- सह सम्बन्ध गुणांक का अर्थ क्या है?
  20. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के किन्ही दो सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए
  22. प्रश्न- दीर्घीकृत ध्यान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उसके निर्धारक की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के स्वरूप को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  24. प्रश्न- चयनात्मक अवधान तथा दीर्घीकृत अवधान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिगम से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  26. प्रश्न- क्लासिकी अनुबन्धन सिद्धान्त का विवेचन कीजिए तथा प्राचीन अनुबन्धन के प्रकार बताइये।
  27. प्रश्न- क्लासिकल अनुबंधन तथा क्लासिकल अनुबंधन को प्रभावित करने वाले तत्वों की व्याख्या कीजिए।
  28. प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन का अर्थ और उसकी आधारभूत प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अधिगम अन्तरण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार बताइये।
  30. प्रश्न- शाब्दिक सीखना से आप क्या समझते हैं? शाब्दिक सीखने के अध्ययन में उपयुक्त सामग्रियाँ बताइए।
  31. प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिये।
  32. प्रश्न- शाब्दिक सीखना में स्तरीय विश्लेषण किस प्रकार किया जाता है?
  33. प्रश्न- शाब्दिक सीखना की संगठनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा का महत्त्व बताइये।
  35. प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन में संज्ञानात्मक कारकों की भूमिका बताइये।
  36. प्रश्न- अधिगम के नियमों का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- परिवर्जन सीखना पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- सीखने को प्रभावित करने वाले कारक।
  39. प्रश्न- स्मृति की परिभाषा दीजिये। स्मृति में सुधार कैसे किया जाता है?
  40. प्रश्न- स्मृति के प्रकारों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  41. प्रश्न- स्मृति में संरचनात्मक एवं पुनर्सरचनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- विस्मरण के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रासंगिक तथा अर्थगत स्मृति से क्या आशय है? इनमें विभेद कीजिये।
  44. प्रश्न- अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति को संक्षेप में बताते हुये दोनों में विभेद कीजिये।
  45. प्रश्न- 'व्यतिकरण धारण को प्रभावित करता है।' इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- स्मृति के स्वरूप पर प्रकाश डालिए। स्मृति को मापने की विधियों का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- विस्मरण के निर्धारक और कारणों का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- संकेत आधारित विस्मरण किसे कहते हैं? विस्मरण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- स्मरण के प्रकार बताइयें।
  50. प्रश्न- अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति में अन्तर बताइये।
  51. प्रश्न- स्मृति सहायक प्रविधियाँ क्या हैं?
  52. प्रश्न- विस्मरण के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- पुनः प्राप्ति संकेतों के अभाव में किस प्रकार विस्मरण होता है?
  54. प्रश्न- स्मृति लोप क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- विस्मरण के अवशेष-प्रसक्ति समाकलन सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिये।
  56. प्रश्न- ध्यान के कौन-कौन से निर्धारक होते है?
  57. प्रश्न- दीर्घकालीन स्मृति तथा उसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- ध्यान की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  59. प्रश्न- बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  60. प्रश्न- बुद्धि के संज्ञानपरक उपागम से आप क्या समझते हैं?
  61. प्रश्न- बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों तथा महत्व का वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- गिलफोर्ड के त्रिआयामी बुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  63. प्रश्न- 'बुद्धि आनुवांशिकता से प्रभावित होती है या वातावरण से। स्पष्ट कीजिये।
  64. प्रश्न- बुद्धि को परिभाषित कीजिये। इसके विभिन्न प्रकारों तथा बुद्धिलब्धि के प्रत्यय का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार बताइये।
  66. प्रश्न- वंशानुक्रम तथा वातावरण बुद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है?
  67. प्रश्न- संस्कृति परीक्षण को किस प्रकार प्रभावित करती है?
  68. प्रश्न- परीक्षण प्राप्तांकों की व्याख्या से क्या आशय है?
  69. प्रश्न- उदाहरण सहित बुद्धि-लब्धि के प्रत्यन को स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- बुद्धि परीक्षणों के उपयोग बताइये।
  71. प्रश्न- बुद्धि लब्धि तथा विचलन बुद्धि लब्धि के अन्तर को उदाहरण सहित समझाइए।
  72. प्रश्न- बुद्धि लब्धि व बुद्धि के निर्धारक तत्व बताइये।
  73. प्रश्न- गार्डनर के बहुबुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- थर्स्टन के समूह कारक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धान्त के आधार पर बुद्धि की व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  77. प्रश्न- व्यक्तित्व से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयुक्त परिभाषा देते हुए इसके अर्थ को स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- व्यक्तित्व कितने प्रकार के होते हैं? विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण किस प्रकार किया है?
  79. प्रश्न- व्यक्तित्व के विभिन्न उपागमों या सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  80. प्रश्न- व्यक्तित्व पर ऑलपोर्ट के योगदान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- कैटेल द्वारा बताए गए व्यक्तित्व के शीलगुणों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  82. प्रश्न- व्यक्ति के विकास की व्याख्या फ्रायड ने किस प्रकार दी है? संक्षेप में बताइए।
  83. प्रश्न- फ्रायड ने व्यक्तित्व की गतिकी की व्याख्या किस आधार पर की है?
  84. प्रश्न- व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- व्यक्तित्व के मानवतावादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- कार्ल रोजर्स ने अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व की व्याख्या किस प्रकार की है? वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- व्यक्तित्व के शीलगुणों का वर्णन कीजिये।
  88. प्रश्न- प्रजातान्त्रिक व्यक्तित्व एवं निरंकुश व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिये।
  89. प्रश्न- शीलगुण सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  90. प्रश्न- शीलगुण उपागम में 'बिग फाइव' (OCEAN) संप्रत्यय की संक्षिप्त व्याख्या दीजिए।
  91. प्रश्न- प्रेरणा से आप क्या समझते हैं? आवश्यकता, प्रेरक एवं प्रलोभन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  92. प्रश्न- विभिन्न शारीरिक एवं सामाजिक मनोजनित प्रेरकों का वर्णन कीजिए।
  93. प्रश्न- प्रेरणाओं के संघर्ष से आप क्या समझते हैं? इसके समाधान करने के तरीकों पर प्रकाश डालिये।
  94. प्रश्न- आवश्यकता-अनुक्रमिकता से क्या तात्पर्य है? मैसलो के अभिप्रेरणा सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  95. प्रश्न- उपलब्धि प्रेरक एक प्रमुख सामाजिक प्रेरक है। स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- “बाह्य अभिप्रेरण देने से आन्तरिक अभिप्रेरण में कमी आती है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  97. प्रश्न- जैविक अभिप्रेरकों के दैहिक आधार का वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- आन्तरिक प्रेरणा क्या है और यह किस प्रकार कार्य करती है?
  99. प्रश्न- दाव एवं खिंचाव तंत्र अभिप्रेरित व्यवहार में किस प्रकार कार्य करता है?
  100. प्रश्न- जैविक और सामाजिक प्रेरक।
  101. प्रश्न- जैविक तथा सामाजिक अभिप्रेरकों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  102. प्रश्न- आन्तरिक एवं बाह्य अभिप्रेरण क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- प्रेरणा चक्र पर टिप्पणी लिखो।
  104. प्रश्न- अभिप्रेरणात्मक व्यवहार के मापदण्ड बताइये।
  105. प्रश्न- पशु प्रणोद की माप का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- संवेग से आप क्या वर्णन कीजिये। समझते हैं? इसकी विशेषतायें तथा इसके विकास की प्रक्रिया का
  107. प्रश्न- सांवेगिक अवस्था में क्या शारीरिक परिवर्तन होते हैं?
  108. प्रश्न- संवेग के जेम्स लांजे सिद्धान्त तथा कैनन बार्ड सिद्धान्त का तुलनात्मक विवरण दीजिये।
  109. प्रश्न- संवेग शैस्टर-सिंगर सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये।
  110. प्रश्न- संवेग में सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
  111. प्रश्न- संवेगों पर किस प्रकार नियंत्रण कर सकते हैं? स्पष्ट कीजिये।
  112. प्रश्न- 'पॉलीग्राफिक विधि झूठ को मापने की उत्तम विधि है। स्पष्ट कीजिये।
  113. प्रश्न- संवेग के
  114. प्रश्न- संवेग के कैननबार्ड सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा उनकी मानसिक योग्यता सामान्य छात्रों से कम होती है।
  115. प्रश्न- सार्वभौमिक एवं विशिष्ट संस्कृति संवेग की अभिवृत्ति के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  116. प्रश्न- गैल्वेनिक त्वक् अनुक्रिया का अर्थ बताइए।
  117. प्रश्न- संवेग के आयामों को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- संवेगावस्था में होने वाले परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- संवेगावस्था में होने वाले बाह्य शारीरिक परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  120. प्रश्न- झूठ संसूचना से क्या आशय है?
  121. प्रश्न- संवेग तथा भाव में अन्तर बताइये।
  122. प्रश्न- संवेग के मापन की कोई दो विधियाँ बताइये।

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